
गर्भाधान संस्कार
ऐसा प्रतीत होता है मानों हम सब Destined to head toward DESTRUCTION
बच्चों के शादी की उम्र बढ़ रही है और बच्चियों में menopause का उम्र घटता जा रहा है|
परिणाम- infertility की समस्या
शास्त्र द्वारा दिए गए दिशा निर्देश को तो हम मानने से इंकार करने लगे हैं लेकिन विज्ञान जब कुछ कहता है हम मान लेते हैं|
देखा जाये विज्ञान क्या कहता है–
चिकित्सा विज्ञान कहता ही की वर्तमान में पैदा लेने वाले बच्चों में विकृति बढ़ती जा रही है| बच्चे बहुत सारे विकृतियों के साथ ही पैदा हो रहे हैं|
Genetic science के डॉक्टरों के अनुसार युवा पीढ़ी का fertility count, dangerously नीचे गिर रहा है|
परिणाम – शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल संतान|
शारीरिक रूप से दुर्बल संतान अर्थात –
कम Stamina
श्रम नहीं कर सकते
जल्दी थक जाते हैं
इन्फेक्शन बहुत जल्दी लग जाता है|
बीमार होते हैं तो जल्द ठीक नहीं होते|
मानसिक रूप से दुर्बल संतान-
Tension
Frustration
Depression
Suicidal instinct
इन सबके शिकार हो जाते हैं| किसी भी प्रकार के समस्या के समाधान के लिए जो मानसिक बल चाहिए वह जन्म से ही नहीं होता|
जो जन्म से ही शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल होता है उसे दुनिया के कोई डॉक्टर ठीक नहीं कर सकता है|
ये चिंता के विषय है कि समर्थ संतान कैसे बनेगी जब उनको जन्म देनेवाली युवा पीढ़ी ही समर्थ नहीं है|
मेरा विषय चूँकि ज्योतिष है, इसलिए ज्योतिष क्या कहता है जरा इसे भी जानें-
ज्योतिष के अनुसार –
जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार हैं जिसमें विवाह संस्कार और गर्भाधान संस्कार हैं|
गर्भाधान संस्कार क्यों? इसको इतना महत्व क्यों ?
ज्योतिषशास्त्र बहुत layered है| इसकी परतों को हटाए बिना इसको समझना मुश्किल ही नहीं असंभव है|
हमारे जीवन की जब शुरुआत होती है तब अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के साथ हम इस जीवन में प्रवेश करते हैं| इसमें माध्यम बनते हैं हमारे माता और पिता और हमारे माता और पिता के संस्कार भी इसमें जुड़ते हैं| पिता के चौदह कुल और माता के पांच कुलों के संस्कार जुड़ता है|
14 को 5 से गुणा करने पर मिला 70 अर्थात 70 कुलों के संस्कार|
स्वयं के पूर्व जन्म के संस्कार इसमें जोड़ेंगे तो 70 + 1 = 71
70 कुलों के गुण और स्वयं के प्रारब्ध मिलकर 71 , जिसे विज्ञान genetic science कहता है, अनुवांशिकी गुण कहता है ज्योतिष उसे संस्कार कहता है| इतने सारे कुल और स्वयं के प्रारब्ध लेकर एक जीव इस संसार में प्रवेश लेने की प्रक्रिया में होता है| तो यह प्रवेश जीव के साथ किसी प्रकार की विकृतियों के प्रवेश न हो, ,जीवन की शुरुआत विकृतियों के साथ न हो, इसके लिए ही ज्योतिष गर्भाधान संस्कार की बात करता है|
बहुत सारे लोग कहते हैं की वे इन सभी चीजों को नहीं मानते, लेकिन उनके मानने या न मानने से तो चीजें नहीं होती न, चीजें तो फिर भी होती हैं|
“सम्यक करोति इति संस्कारः”
जो क्रम में नहीं है उसे क्रम में लाना और जो अव्यवस्था है उसे दुरुस्त करना और उसके द्वारा अनुवांशिकी गुण में परिवर्तन लाना ताकि किसी भी प्रकार के विकृति को जगह न मिले|
इसको रोजमर्रा के जीवन के एक उदहारण से समझें-
दही कफ कारक कहा गया है, लेकिन इसी दही का जब मंथन कर दिया जाता है, संस्कार परिवर्तित कर दिया जाता है तो वह छाछ बनकर त्रिदोष हरने वाली हो जाती है|
लेकिन कैसा छाछ?
लकड़ी के मथनी से बनाया हुआ छाछ, मिक्सी के जार में घुमाकर बनाया गया छाछ नहीं|
लकड़ी के मथनी से जब clockwise और anti clockwise दही को घुमाकर छाछ तैयार किया जाता है तब वह सर्व गुणों को रखने वाला हो जाता है| परन्तु जब मिक्सी के जार में एक ही दिशा में घूमती है वह दही तो उससे बने हुए छाछ में कुछ विटामिन के क्षय हो जाता है|
बना तो दोनों में छाछ ही लेकिन एक में सारे गुण रह गए और दूसरे में कुछ गुणों के नाश हो गया|
ठीक उसी प्रकार जब हमारे इस जीवन की शुरुआत हो रही होती है उस समय अगर हम कुछ बातों का ध्यान रख लें तो अच्छे गुणों के साथ हमारी संतति इस संसार में प्रवेश पा सकेगी|
हमें सिर्फ संतान पैदा नहीं करना है| संतान तो एक पशु भी पैदा कर लेता है| हमारी शास्त्रीय परिकल्पना तो ऐसे संतान जन्म की है जहाँ संतान अपने पिता का सवाया होना चाहिए|
गर्भाधान के समय माता – पिता की मनः स्थिति बच्चे का चरित्र निर्माण करने में अहम् भूमिका निभाते हैं और ग्रह नक्षत्रों का एक खास allignment भी गुणी और विद्वान संतान के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसको हम सबने द्वापर काल में महाभारत से बहुत ही अच्छे तरीके से जाना है| मेरे अनुसार महाभारत,ज्योतिष की प्रयोगशाला है|
इक्कीसवीं सदी में जब ज्योतिष से उपाय के बारे में पूछा जाता है और ज्योतिषी के बताये ठगी को हम ज्योतिष का कथन मानकर ज्योतिष को नकारते हैं तो ऐसे में आइये न एक बार अनुवांशिकी गुणों के बारे में सही से जानें, संस्कारों के बारे में सही से जानें|
स्वयं के नाश का नक्शा नहीं तैयार करें बल्कि कल्याण का मार्ग तैयार करें|
स्वस्थ संतान के निर्माण के विज्ञान से स्वयं भी परिचित हों और विश्व को भी इससे परिचित करवाएं|
स्वस्थ संतान, स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज और एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाएं|