
हमारे विचारों की संवाहिका माँ शारदा और हमें कुशल बनाने वाली माँ सरस्वती
माघ शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है| इस दिन माँ सरस्वती की पूजा और माँ के शारदा रूप की पूजा की जाती है|
माँ सरस्वती
हमने बचपन से सरस्वती का जो रूप देखा है उसमें , श्वेत कमल पर, श्वेत साड़ी में चन्द्रमा के समान धवला, विराजमान देदीप्यमान माँ सरस्वती जिनके एक हाथ में वीणा, एक हाथ में वेद, एक हाथ में माला और एक हाथ में जल पात्र होता है|
माला- ध्यान का द्योतक है,
वेद ज्ञान का द्योतक है,
जल पात्र शुद्ध और सात्विक रचनात्मकता का द्योतक है और
वीणा सुर और ताल की लयबद्धता, हर प्रकार के कार्यों में पूर्ण कुशलता का द्योतक है|
देवी माहात्म्य में इन्हे अष्ट भुजा वाली कहा गया है| इनके आठों हाथ में क्रम से घंटी , त्रिशूल , फाल , शंख,,मुसल, चक्र, तीर और धनुष को बताया गया है|
ऋग्वेद के सरस्वती सूक्त में माँ सरस्वती की आराधना की गयी है|
इयमददाद् रभसमृणच्युतं दिवोदासं वध् रयश् वाय दादुषे ।
या शश् वन्तमाचखादावसं पणिं ता ते दात्राणि तविषा सरस्वति ॥ १ ॥
इयं शुष्मेभिर्बिसखा इवारुजत् सानु गिरीणां तविषेभिरुर्मिभिः ।
पारावतघ्नीमवसे सुवृक्तिभिः सरस्वतीमा विवासेम धीतिभिः ॥ २ ॥
सरस्वति देवनिदो निबर्हय प्रजां विश् वस्य बृसयस्य मायिनः ।
उत क्षितिभ्योऽवनीरविन्दो विषमेभ्यो अस्त्रवो वाजिनीवति ॥ ३ ॥
प्रणो देवि सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । धीनामवित्र्यवतु । ॥ ४ ॥
यस्या देवि सरस्वत्युपब्रूते धने हिते । इन्द्रं न वृत्रतूर्ये ॥ ५ ॥
त्वं देवि सरस्वत्यवा वाजेषु वाजिनि । रदा पूषेव नः सनिम् ॥ ६ ॥
उत स्या नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः ।
वृत्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम् ॥ ७ ॥
यस्या अनन्तो अर्हुतस्त्वेषश् चेरिष्णुरर्णवः ।
अमश् चरति रोरुवत् ॥ ८ ॥
सा नो विश् वा अति द्विषः स्वसृरन्या ऋतावरी ।
अतन्नहेव सूर्यः ॥ ९ ॥
उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा ।
सरस्वती स्तोम्या भूत् ॥ १० ॥
आपप्रुषी पार्थिवान्युरु रजो अन्तरिक्षम् ।
सरस्वती निदस्पातु ॥ ११ ॥
त्रिषधस्था सप्तधातुः पञ्च जाता वर्धयन्ती ।
वाजेवाजे हव्या भूत् ॥ १२ ॥
प्र या महिम्ना महिनासु चेकिते द्युम्नेभिरन्या अपसामपस्तमा ।
रथ इव बृहति विभ्वने कृतोपस्तुत्या चिकितुषा सरस्वती ॥ १३ ॥
सरस्वत्यभि नो नेषि वस्यो माप स्फरीः पयसा मा न आ धक् ।
जृषस्व नः सख्या वेश्याच मा त्वत् क्षेत्राण्यरणानि गन्म ॥ १४ ॥
सरस्वती की प्रशंसा करते हुए उनसे यह मांग की जा रही है कि हे देवी आप हमारी रक्षा करें, हमें हर प्रकार का कौशल प्रदान करें, धन धान्य से भरपूर रखें, युद्ध में विजयी बनाएं और वाणी की शुचिता बनाये रखने में सहायक हों|
यहाँ जो बात अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती है वह है वाणी की शुचिता|
सरस्वती को वाक की देवी भी कहा गया है| और शास्त्र के अनुसार- ‘ वंदे वाणी विनायकौ’ – विनायक ( गणेश ) से पहले वाणी( सरस्वती) का आवाहन किया जाना चाहिए| वाणी की देवी सरस्वती का निवास जिह्वा पर होता है तो हमारी बोली में संतुलन हो, कब कहाँ, किससे और क्या बोलना चाहिए इसका ज्ञान मनुष्य को होना चाहिए| बोलने में उसकी कुशलता दिखनी चाहिए|
और यह कुशलता हासिल होगी हमें वाक साधना से| बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परावाणी, ये वाणी के प्रकार हैं| वाणी क्रम से नीचे जाती है| बैखरी वाणी जीभ में होती है| मध्यमा वाणी कंठ में होती है| पश्यन्ति वाणी ह्रदय में होती है और परावाणी मूलाधार में होता है| जब मनुष्य साधना करते करते परावाणी में पहुँच जाता है तब वह समाधिस्थ हो जाता है| इसके बाद कुण्डलिनी जागृत होता है और फिर धीरे धीरे ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर होना प्रारम्भ होता है और ऊपर जाकर वह गुरुस्थान से मिल जाता है| आरोह और अवरोह की चक्रीय गति आरम्भ हो जाती है, शरीर तो संतुलित होना प्रारम्भ करता ही है, मन बुद्धि और वाणी भी संतुलित होने लगते हैं और धीरे धीरे हम कुशल होने लगते हैं| और हमारी यही कुशलता न सिर्फ हमें विद्वान बनाता है वरन समाज में हमें पद, प्रतिष्ठा, मान और सम्मान भी दिलवाता है|
इसलिए हमें कुशल बनाने वाली माँ सरस्वती की पूजा की जाती है|
अब यहाँ तक तो बात समझ में आती है, लेकिन इसी दिन माँ के शारदा रूप की आराधना क्यों की जाती है, यह विचार भी मन में आता है| हमलोग जब स्कूल में थे तब सरस्वती पूजा के दिन सभी समवेत स्वर में माँ को याद करते हुए गाते थे – ‘माँ शारदे कहाँ तू वीणा बजा रही है..’| बालपने में जो प्रश्न मन में आया की ‘सरस्वती’ की जगह ‘शारदा’ क्यों बोलते हैं? इसका जवाब मिला रामचरितमानस से|
माँ शारदा
‘शारदा’ हमारे विचारों की संवाहिका हैं|
हम जिस प्रकार की सोच का निर्माण करते हैं, उन सोचों का क्रियान्वयण किस प्रकार हो, यह देखने का जिम्मा है शारदा का|
रामचरितमानस, अयोध्या कांड में – राम के राज्याभिषेक की जब बात होती है और गुरु वशिष्ठ इसकी सूचना राम को देते हैं, तब राम विस्मय में भरके सोचते हैं कि ऐसा कैसे होगा? अब तक तो हम सभी भाईयों का सब काम, सब संस्कार एक साथ हुआ तो अब ये राज्याभिषेक मेरा अकेले का क्यों? उनको अपने वंश में दोष दिखाई देने लगा| इनके इस सोच रूपी बीज का अंकुरण आरम्भ हुआ और एक क्षण में पूरा दृश्य ही बदल गया |
“सारद बोली बिनय सुर करहिं| बारहिं बार पाय लै परहिं||
बिपति हमारी बिलोकि बड़ी मातु करिअ सोइ आजु|
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु ||
देवताओं ने कुचाल रचना आरम्भ कर दिया| उन्होंने शारदा को बुलाया और कहा कि मात| हमारी विपत्ति बहुत बड़ी है, तुम माँ हो और माँ अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करती है,तो तुम उस विपत्ति को दूर करो|
माँ शारदा देवताओं को मन ही मन गाली देती हुई चल देती हैं|
‘ऊंच निवासु नीची करतूति’
फिर वह किस प्रकार मंथरा के मति को फेर देती हैं, उसके जिह्वा पर विराजती हैं, मंथरा किस प्रकार कैकेयी को अपने प्रभाव में लेती हैं और फिर राम के वन गमन का मार्ग प्रशस्त होता है- इससे सभी परिचित हैं|
‘नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेयी केरी|
अजस पेटारी ताहि करि गयी गिरा मति फेरी|
हम जिस प्रकार के सोच का निर्माण करते हैं उस सोच को पूर्ण करने में शारदा सक्रीय भूमिका निभाती हैं|
हमरी सोच के क्रियान्वयण के लिए माँ शारदा की आराधना और हममें कुशलता आये इसके लिए माँ सरस्वती की आराधना की जाती है|
प्रकृति के साथ लयबद्धता और आरोग्य
5 फरवरी को वसंत पंचमी है यह तो सब जानते हैं लेकिन वसंत का यह पंचमी, माघ शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले नवरात्र का पाँचवाँ दिन होता है, इससे कुछ लोग परिचित नहीं भी हो सकते हैं ।
इस नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है ।
यह समय मौसम परिवर्तन का होता है । सूर्य का ताप शनैः शनैः बढ़ना शुरू होता है इसलिए यह वह समय होता है कि हम प्रकृति के साथ लयबद्ध होकर अपने खान पान में बदलाव लाना शुरू करें और जाती सर्दी एवं आती गर्मी का स्वागत स्वस्थ रहकर करें ।
प्रकृति के साथ तालमेल और खान पान का समुचित ध्यान किस प्रकार रखा जाए ??
किस प्रकार हम सही सोच के साथ सही निर्णय ले सकें।
स्थिर मति से हम निर्णय ले सकें इसके लिए माँ सरस्वती की आराधना करते हैं हम।
आइए माँ सरस्वती का आवाहन करें। सरस्वती की आराधना करें| माँ शारदा का ध्यान करें|
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा
समस्त दुर्मति को दूर करने वाली माँ सरस्वती मेरी रक्षा करें|