
हमारे यहाँ अनेक धार्मिक अवसरों पर पीपल वृक्ष के पूजन का विधान है| पीपल में पितरों का वास माना गया है| आखिर पीपल के वृक्ष को हमारे यहाँ इतनी महत्ता क्यों प्रदान की गयी है?? क्या सिर्फ इसी वजह से या इस वजह से कि यह चौबीसों घंटे जीवन प्रदायिनी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है??
हमदोनों का एक दूसरे से जुड़ाव की वजह कहीं यह भी तो नहीं…
इस संसार में प्रवेश हेतु दोनों,( पीपल और हम) एक ही प्रकार की प्रक्रिया से गुजरते हैं और वह है परकाया प्रवेश|
पीपल – इसे भी जन्म लेने हेतु परकाया प्रवेश करना होता है| कौए के शरीर में आहार स्वरुप इसके बीज का प्रवेश होता है| यही बीज जब कौए के मल में बाहर आता है तब यह वृक्ष बनता है अन्यथा नहीं|
पेड़( पीपल) और पक्षी (कौआ) – विकास हेतु दो सर्वथा अलग अलग प्रकृति और प्रवृति का एकात्म इतनी लयवद्धता .. अद्भुत है| विराट प्रकृति.. असीम सामर्थ्य..
मनुष्य का जन्म भी परकाया प्रवेश से ही संभव है| पहले पिता के शरीर (वीर्य में) में, फिर माता के शरीर (गर्भ में) में|