
योग – सम्पूर्ण विश्व को भारत की देन
जिस क्षण हम मन में दुनिया को लीन करके के बाद मन के साथ एकात्म स्थापित कर लेंगे उसी क्षण योगेश्वर कृष्ण हमें कहेंगे “यथेच्छसि तथा कुरु “|
आइये योगमय हो जाएं!!
युक्ताहारविहारश्चयुक्तचेष्टश्चकर्मसु |युक्तस्वप्नअवबोधश्चयोगोभवतिदु:खहा||
तं विद्याद्दु:खसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्|
“योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते”।।
“योग: कर्मसु कौशलम्”
“समत्वं योग उच्यते”
तं विद्याद्दु:खसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्
‘पश्य मे योगमैश्वर्यम्
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया
“बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम्”।।