
दुल्हिन! हे दुल्हिन! सुनैछी, मामा ने माँ को हाँक लगते हुए कहा|
जी सरकार जी|
काल्ह तिलसकरात हई त तिल, मुढ़ी आ चिउरा के लाई आई बनतई, से है न याद| आ काल्हे से सूरज भी उत्तरायण होथिन त पंडित जी से होम करवायल जतई| रमेसरा के कहवइ, जे आइये हुनका न्योत अतई| आ ओने से लौटे बेरिआ दान करे वाला सामान भी लिख के दे देवई, लेले आयत|
ठीक हई सरकार जी, वही करवई|
क्या बात हो रही है सास पुतोह के बीच, बाबा ने आंगन में प्रवेश करते हुए पूछा |
कुछ नहीं बाबूजी, बस ऐसे ही|
कल सकरात है न और सूर्य भी उत्तरायण हो रहे हैं, इसलिए माँ ने हवन सामग्री और दान सामग्री मंगवाने और पंडित जी को आज ही न्योता भेजवा देने के लिए कहा है|
रमेसर को आपने देखा है क्या बाबूजी?
क्यों क्या हुआ? बाबा ने पूछा|
कुछ नहीं, बस उसे पंडित जी के यहाँ भेजना था और बाजार से कुछ सामान मंगवाना था|
अरे बहु, पहले जरा बैठ जाओ और सुनो|
कल मकर संक्रांति तो है लेकिन सूर्य का उत्तरायण होना नहीं है|
क्या मतलब बाबूजी? ऐसा कैसे ?
देखो, इसके लिए सायण और निरायण को समझना होगा|
बाबूजी ये सायण और निरायण क्या है?
बेटा इसको सरल भाषा में समझो, जब सूर्य के भ्रमण का आरंभ किसी नियत स्थान से माना जाय तो निरायण और जब सूर्य के भ्रमण का कोई नियत स्थान न हो वरन वह गतिशील हो तो वह सायण कहलाता है| हमारे पूर्वज बहुत ही अच्छे तरीके से जानते थे कि कब सायण गणना करनी है और कब निरायण गणना करनी है|
सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में गोचर का पहला दिन मकर संक्रांति कहलाता है|
मकर संक्रांति में सूर्य आकाश में धनु राशि के तारों से मकर राशि के तारों की ओर खिसकता जान पड़ता है। ज्योतिष में सूर्य का यह निरायण खिसकाव कल हो रहा है|
सायण खिसकन दिसम्बर 22 को हो चुकी है| सूर्य का यह सायण खिसकाव उत्तरायण कहलाता है|
यहाँ से सूर्य की उत्तर दिशा की यात्रा शुरू होती है।
इस वर्ष यह खिसकाव सूर्य के धनु राशि में, मूल नक्षत्र में 6° पर रहते हो गया है|
यह तारीख बदलती रहती है|
क्या मतलब बाबूजी? कल सूर्य उत्तरायण नहीं होंगे?
नहीं बेटा , सूर्य 22 दिसम्बर को ही उत्तरायण हो चुके हैं| उतर दिशा की यात्रा प्रारम्भ कर चुके हैं|
अच्छा बेटी इस गणना पर विस्तार से दूसरे दिन बात करेंगे| अभी तो ये बताओ कि समझ में आया न कि कल सिर्फ मकर संक्रांति है, सूर्य का उत्तरायण होना नहीं है|
जी बाबूजी|
और बाबा मेरे दिमाग का बत्ती भी भुक्क से जल गया, नंदी जो माँ की गोद में इतने देर से चुप बैठी थी हँसते हुए बोल पड़ी|
सिर्फ बत्तिये जला, कि दिमाग में कुछ रोशनी का प्रवेश भी हुआ, बाबा ने भी रस लेते हुए कहा|
हाँ बाबा दिमाग में कुछ रोशनी भी घुसा है, नंदी ने भी बाबा से लाड़ जताते हुए कहा|
अच्छा बाबूजी अब हम चले तिल का लाई बनाने|
बेटी एक बात बताओ, क्या तुम जानती हो कि इस माह में तिल का लाई क्यों बनाया जाता है?
या यह जानती हो कि क्यों सूर्य को अस्थियों का और ह्रदय का कारक माना जाता है?
नहीं बाबूजी!
बताइये न|
हाँ हाँ बाबा बताइय न,
तो सुनो, ‘आयुर्वेद सार संहिता’ में इन दिनों तिल-गुड़ के सम्मिश्रण से बने पदार्थों के सेवन को स्वास्थ्यवर्द्धक एवं बलवर्द्धक बताया गया है। तिल का सेवन इसलिए कि तिल से मिलता है कैल्शियम और सूर्य की उष्णता से हमारी त्वचा में बनता है विटामिन डी| विटामिन डी की सहायता से यह भोजन के कैल्शियम को आँतों द्वारा अवशोषित करता है और इस तरह से हड्डियों को मज़बूत करता है|
साथ ही साथ, तिल में पॉलीअनसैचुरेटेड वसा-अम्लों की प्रचुरता होती है। ये अम्ल हृदय की ढेरों बीमारियों से बचाते हैं।
हमारे पूर्वजों ने बहुत ही सरलता पूर्वक हमारे जीवन में उन सभी चीजों का समावेश किया जो हमारे लिए आवश्यक है|
सूर्य को प्राचीन ग्रन्थ अस्थियों और हृदय का अधिपति देवता क्यों मानते हैं, अब आया समझ में बाबूजी|
अरे दोनों ससुर बेटी बात ही करती रहोगी या कल की तैयारी भी करोगी? लाई बनाने चलोगी भी अब, मामा ने कहा|
हाँ मामा, बस जा ही रहे हैं हम और माँ लाई बनाने|
नंदी खुश थी कि आज उसने मकर संक्रांति और उत्तरायण के रहस्य को जाना|