
कुछ लोग ऐसे होते हैं कि हाड़ तोड़ मेहनत करने के बावजूद, कठिन परिश्रम करने के बाद भी माँ लक्ष्मी की कृपा उनके ऊपर नहीं होती है| वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जिनके कम परिश्रम करने के बावजूद माँ लक्ष्मी की उनके ऊपर भरपूर कृपा बरसती है| कहते हैं सब किस्मत का खेला है| क्या सच में ऐसा है? अगर ऐसा है तो क्या है वह? अगर इसे जान लिया जाये तो होगी धन वर्षा?
धनतेरस और दीपावली जब आने ही वाला है तो ऐसे में धन की चर्चा करनी तो बनती है| धनतेरस क्या है इसको जानने के साथ साथ धनतेरस के ‘धन’ का क्या है गूढ़ अर्थ यह जानेंगे साथ ही ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है धन के बारे में, इसको भी जानेंगे|
धनतेरस – धन+ तेरस
तेरस- त्रयोदशी तिथि के लिए प्रयोग किया जाता है| कहते हैं इसी दिन अमृत मंथन के दौरान आरोग्य के देव धन्वन्तरि और धन की देवी लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था|
धन- आरोग्य के देव धन्वंतरि भी और धन की देवी माँ लक्ष्मी भी, दोनों हैं यहाँ| प्रथम दृष्टि से,धन की बात हो तो रोग से मुक्ति की बात कुछ समझ में नहीं आती है| कुंडली में रोग के लिए छठे भाव की चर्चा की जाती है| धन के साथ रोग को क्यों जोड़ा गया?
थोड़ा इस रहस्य को जाने|
कहते हैं कि स्वास्थ्य ही धन है|
कुंडली का छठा भाव – रोग, ऋण और रिपु( शत्रु) का भाव कहा गया है|
इस भाव के भीतर प्रवेश करें –(आप सभी यह सोच रहे होंगे कि धन की बात हो रही है तो शुरुआत कुंडली के छठे भाव से क्यों? यह भाव तो रोग का भाव है| तो देखते जाईये, यह जो जीवन का जीपीएस है न ज्योतिष, यह बड़े काम की चीज है| यह आपको, आपके जीवन यात्रा के मार्ग में आने वाले हर गड्ढे से बचाकर सुगम मार्ग से लेकर जायेगा|)
इस भाव को अर्थ भाव कहा गया है|
उदहारण से इसे समझें-
1 -रामचरितमानस में शत्रुघ्न को अर्थ कहा गया है| यही शत्रुघ्न, मंथरा ( मंथरा और कैकेयी प्रकरण) को बालों से घसीटते हुए उसपर लातों का प्रहार करते हैं| क्यों? क्योंकि मंथरा के रूप में लोभ वृत्ति का परिवार में प्रवेश हो रहा है| अर्थ जब लोभ से जुड़ेगा तो, रोग लाएगा, विनाश लाएगा, इसलिए शत्रुघ्न उस लोभवृत्ति का नाश करते हैं| शत्रुघ्न का विवाह श्रुतिकीर्ति से हुआ है| श्रुति वेद को भी कहा जाता है और कीर्ति माने यश|
क्या संकेत है?
यह संकेत है कि अर्थ अगर वेद से जुड़ जाए तो ऐसा अर्थ, ऐसा धन यश प्रदान करने वाला होता है|धनतेरस के ‘धन’ का एक रहस्य तो यह है|
निर्णय हमारा कि हम मंथरा को भगाकरआरोग्य को आमंत्रित करते हैं या श्रुतिकीर्ति के रूप में यश और समृद्धि का वरण करते हैं|
2- छठे भाव के भीतर थोड़ा और प्रवेश करें–
धारणा का भाव है छठा भाव और मनोमयकोश का निवास स्थान भी है|
मनोमयकोश- मन की एकाग्रता कैसे हो, चित्त पर नियंत्रण कैसे हो यह बतलाता है| कुंडली में जिसे चन्द्रमा की सहायता से भली भांति, ज्योतिष समझाता है| छान्दोग्य उपनिषद में चंद्र को औषधि कहा गया है| मन को नियंत्रित करके हम यश और समृद्धि पाएं, निरोगी शरीर पाएं या अनियंत्रित मन की वजह से रोगी काया पाएं और धन को नाश करें- निर्णय हमारा|
धारणा- शरीर का नियंत्रण, सांसों का नियंत्रण और इन्द्रियों के नियंत्रण के बाद, विषयों में आसक्त हुए बगैर हमने जिस लक्ष्य को धारण किया वह लक्ष्य साधन की प्रक्रिया इसी सात्विकता से क्रियाशील होकर, आरोग्य यश और समृद्धि देने वाला होगा| इसके विपरीत यह प्रक्रिया रोग को लेकर आने वाला तो होगा ही, धन का नाश भी करेगा- निर्णय हमारा|
छठे भाव से हमने धनतेरस के ‘धन’ में छुपे गूढ़ रहस्यों को जाना|
इसके अलावा कुंडली में अन्य भावों की सहायता से धनयोगों का निर्माण होता है साथ ही ग्रहों के आपसी मेल से भी धन योग का निर्माण होता है| क्या हैं ये, इन्हे देखें|
भावों की सहायता से बनने वाला धन योग–
कुंडली का दूसरा भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव इन चारो भावों और भावेश के बीच का सम्बन्ध जितना घनिष्ठ होगा व्यक्ति के जीवन में धन प्राप्ति का योग उतना ही प्रबल होगा|
इस योग को अगर सम्बंधित दशा का सहयोग भी मिल गया तब तो सोने पे सुहागा हो जाएगा|
कभी कभी ऐसा भी देखने में आता है कि कोई व्यक्ति,जो अभी तक गरीबी में जीवन का निर्वाह कर रहा था,अचानक से उसकी लॉटरी लग जाती है और वह रातों रात प्रचुर धन का मालिक हो जाता है| या फिर अचनाक से उसके काम में लाभ होने लगता है| इसके पीछे क्या रहस्य है? इसके पीछे का रहस्य यह है कि व्यक्ति की दशा बदलती है और इस बदली हुई दशा में, दशा से द्वितीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है| जब तक यह दशा चलती है, व्यक्ति पर माँ लक्ष्मी की भरपूर कृपा रहती| दशा समाप्त होते ही यह सम्बन्ध टूटता है और धन का प्रभाव बाधित हो जाता है|
ग्रहों के संयोग से बनने वाले धन योग ( संक्षिप्त वर्णन) –
1- कुंडली में सूर्य और चंद्र उच्च के हों, शुक्र या गुरु पंचम या नवम में हो तो धन योग होता है|
2- सूर्य छठे भाव में, मंगल नवम भाव में, गुरु पंचम भाव में और बुध,शुक्र केंद्र भाव में हो तो धन योग होता है|
3- बुध लग्न भाव में, चन्द्रमा चतुर्थ भाव में, गुरु नवम भाव में और राहु एकादश भाव में हो तो धन योग होता है|
4- गुरु द्वितीय भाव में और शुक्र अष्टम भाव में हो तो धन यह होता है|
इस प्रकार हमने देखा कि आरोग्य और समृद्धि दोनों की प्राप्ति हेतु ज्योतिष हमारा मार्गदर्शन करता है|
आरोग्य के देव धन्वंतरि की कृपा और धन दी देवी लक्ष्मी की कृपा हम सब पर बनी रहे यही मंगल कामना|
तमसो मा ज्योतिर्गमय
अंधकार से प्रकाश की ओर चलें|
@बी कृष्णा