
साल 2012 में मैंने कोट चक्र के रहस्यों को समझने का एक प्रयास शुरू किया । कोटपाल और कोटस्वामी की पूर्व वर्णित परिभाषा को पुनर्परिभाषित किया ।
यहाँ मैने धनुराकार कोटचक्र और सामान्य कोट चक्र संलग्न किया है । यहाँ प्रवेश द्वार भिन्न है।


यहाँ हर ग्रह के लिए एक एक दिशा निर्धारित की गई है। चंद्र नक्षत्र को प्राथमिकता दी गई है अर्थात् जन्म नक्षत्र से प्रवेश प्रारम्भ होता है।
कोट चक्र का विस्तृत वर्णन रामचरितमानस में है ।रामचरितमानस के सुंदरकांड में इसकी संरचना का वर्णन है और लंकाकांड में इसके द्वारा फलित कैसे किया जाए उसका महत्वपूर्ण सूत्र है ।
इसके नियमित अभ्यास से हम जीवन के हर क्षेत्र में घटने वाली घटनाएँ, किस रोज घटित होंगी यह जान सकते हैं।
यह चक्र अद्भुत है।
@ B Krishna