नियम
जगत के विविध तापों से छुटकारा दिलाने वाले अष्टांग योग की बृहत् चर्चा करता है ज्योतिषशास्त्र |ब्रह्म को प्रकाशित करनेवाला ज्ञान भी ‘ योग ‘से ही सुलभ होता है |एकचित्त होना ,चित्त को एक जगह स्थापित करना योग है |चित्तवृतियों के निरोध को भी योग कहते हैं |जीवात्मा एवं परमात्मा में ही अंतःकरण की वृत्तियों को स्थापित करना ‘ योग ‘है | अष्टांग योग से आज हमलोग यम , बारे में ,पुराण क्या कहता हैं ,उसे जानेंगे |इसके बाद एक एक करके नियम ,आसन ,प्राणायाम ,प्रत्याहार ,धारणा,ध्यान और समाधि के बारे में क्रमवार तरीके से जानेंगे |
यम ( संयम ) की बात हमलोग कर चुके हैं | आज हम नियम बारे में जानेंगे |
नियम :-
नियम भी पांच हैं ,जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं |ये हैं :-
शौच
संतोष
तप
स्वाध्याय ,और
ईश्वराराधन
1 – शौच :- दो प्रकार के शौच हैं |बाह्य और आभ्यंतर |मिटटी और जल से बाह्य शुद्धि होती है |और भाव की शुद्धि को आभ्यंतर शुद्धि कहते हैं | दोनों ही प्रकार से जो शुद्ध है वही शुद्ध है दूसरा नहीं |
2 -संतोष :- प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ भी प्राप्त हो जाये ,उसी में हर्ष मनाना ‘संतोष ‘ कहलाता है |
3 – तप :- मन और इन्द्रियों की एकाग्रता को ‘ तप ‘ कहते हैं | तप तीन प्रकार का होता है | वाचिक ,मानसिक और शारीरिक |मन्त्र जप आदि ‘वाचिक’ ,आसक्ति का त्याग ‘ मानसिक ‘ और देव पूजन आदि ‘शारीरिक’ तप हैं |
4 – स्वाध्याय :- वेदाध्याय ,वेदों का अध्ययन इसके अंतर्गत आता है |वेद प्रणव से ही आरम्भ होते हैं | प्रणव अर्थात ॐकार में अकार, उकार तथा अर्थमात्रा विशिष्ट मकार हैं | तीन मात्राएँ , तीनो वेद ,भूः आदि तीनो लोक ,तीन गुण,जाग्रत ,स्वप्न और सुषुप्ति -ये तीन अवस्थाएं तथा ब्रह्मा ,विष्णु और शिव ये तीनो प्रणव रूप हैं |ॐकार द्वैत की निवृति करनेवाला है |
5 – ईश्वराराधन :- मनुष्य को चाहिए कि मन से हृदय कमल में स्थित आत्मा या ब्रह्म का ध्यान करे और जिह्वा से सदा प्रणव का ,ऊँकार का जप करता रहे | ‘प्रणव ‘ धनुष है ,’ जीवात्मा ‘ बाण है तथा ‘ब्रह्म ‘ उसका लक्ष्य कहा जाता है | सावधान होकर लक्ष्य का भेदन करना चाहिए और बाण के सामान उसमे तन्मय हो जाना चाहिये |तदुपरांत जो जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसकी प्राप्ति हो जाती है | प्रणव के भोग और मोक्ष कि सिद्धि के लिए इसका विनियोग किया जाता है |इसमें अंगन्यास ,कवच और हवन किया जाता है |
@ B Krishna Narayan
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