पद्म पुराण – धर्म से अर्थ , अर्थ से काम और काम से फिर धर्म ..
इस गति में, इस चक्र में मोक्ष की चर्चा नही ..
गरूड़ पुराण में चंद्रमा के रथ की चर्चा करते हुए उस रथ के तीन पहिए की चर्चा है ..
रथ भी गति का द्योतक है। यहाँ भी प्रतीक रूप में तीन गति का ही संकेत मिलता है ..
तीन गति के साथ चंद्रमा का विशेष महत्व ..
इसी की समुचित व्याख्या पराशर ने काल चक्र की चर्चा करते समय की है ..
अश्विनी,भरणी,कृतिका,रोहिणी,मृगशिरा,आद्रा छः समूह बनाते हैं। पुनर्वसु से फिर वह वापस अश्विनी से शुरू करते हैं। पुनर्वसु का पहला चरण मिथुन राशि में होता है और बाकी के तीन चरण कर्क राशि ( मोक्ष की राशि) में।
पुनर्वसु को अश्विनी समूह में डालकर पराशर ने भी धर्म,अर्थ और काम गति का समर्थन किया।
पद्म पुराण और गरूड़ पुराण के साथ साथ पराशर ने भी काल को समझाते हुए यही कहा कि काल गतिशील है,यह चक्र है और इस गति में धर्म से अर्थ,अर्थ से काम और काम से फिर धर्म ..
यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभिक है की चार पुरुषार्थों में सिर्फ तीन ही पुरुषार्थ की चर्चा क्यों करते हैं ये ?
चौथे पुरुषार्थ मोक्ष की चर्चा क्यों नहीं करते ?
इसके बारे में गहन अध्ययन के पश्चात् जितना भी समझ पायी आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ.
धर्म ,अर्थ और काम भौतिक पुरुषार्थ है जो हमें सांसारिकता की ओरे प्रवृत करते हैं और मोक्ष हमें सांसारिकता से निवृत करता है.धर्म ,अर्थ और काम भौतिक पुरुषार्थ है जबकि मोक्ष आध्यात्मिक पुरुषार्थ है
मोक्ष शब्द का पुरुषार्थ के रूप में यह अर्थ है –
1 – जनम -मरण के चक्र से मुक्ति
2 – सांसारिक बंधनो से मुक्ति
3 – त्रिताप से मुक्ति
4 – परमात्मस्वरूप का ज्ञान
5 – आत्मज्ञान
महर्षि याज्ञवल्क्य कहते है की आत्मा के ज्ञान के पश्चात् व्यक्ति पुनः संसार में जनम नहीं लेता है.
महर्षि पराशर ने भी सुख के सभी सांसारिक साधनो को दुःख का हेतु माना है . अतएव वास्तविक सुख है मोक्ष की प्राप्ति
मनु ने मोक्ष प्राप्ति के लिए मुख्या रूप से बतलाये गए छह साधनो में ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ कहा है .गीता के चौथे अध्याय में श्रीकृष्ण ज्ञान को यज्ञ की संज्ञा देते हैं.महाभारत के शांतिपर्व में ज्ञान को मोक्ष का कारक माना गया है .महाभारत के ही शांति पर्व में वेदव्यास कहते हैं की रागद्वेषरहित होकर ब्रह्मचारी ,गृहस्थ ,वानप्रस्थी और सन्यासी अपने अपने निर्धारित कर्मो का विधिपूर्वक अनुष्ठान करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं .
इन सभी के बीच का संतुलन है ज्योतिष . नक्षत्रों और राशिओं के माध्यम से धर्म ,अर्थ और काम ही नहीं बल्कि मोक्ष की सम्यक व्याख्या करता है यह .कह सकते हैं की ज्योतिषशास्त्र ज्ञान का शास्त्र है . ज्ञान द्वारा ही संसार की निःसारिता का बोध होता है ,तभी विरक्ति आती है और समग्र ध्यान मोक्षोन्मुखी हो जाता है . ज्योतिषशास्त्र मुख्य रूप से व्यक्ति को जन्म जन्म के जन्म और मरण के चक्र से निकालकर मोक्ष की प्राप्ति निर्वाणदायक प्रक्रिया का शास्त्र है .
राशि ( स्थूल ) ..धर्म,अर्थ,काम ,मोक्ष
नक्षत्र ( सूक्ष्म) ..धर्म,अर्थ,काम
नक्षत्र हमें पुनर्जनम की व्यवस्था को समझाते हैं।
इस व्यवस्था से मुक्ति का मार्ग राशि खोलते हैं।
ज्योतिषशास्त्र ऐसा शास्त्र जो यह बतलाता है की मोक्ष प्राप्ति सिर्फ मृत्यु का वरन करके ही नहीं किया जा सकता ,वरन जीवित व्यक्ति भी ज्ञान के फलस्वरूप ब्रह्म का साक्षात्कार करके आत्मज्ञान को पा सकता है . मोक्ष को पा सकता है . सांसारिकता से निवृत हो सकता है .